एक सरोवर के पास लगभग 40 हंस रहा करते थे उसके पास एक बृक्ष पर एक कौवा रहा करता था जिससे हंसो और कौवो मे दोस्ती हो गयी थी ।
एक बार पास के गाँव से एक सेठ जी की बेटी की शादी के उपलक्ष्य मे भोजन करने का निमन्त्रण आया।
जब सभी हंस निमन्त्रण मे जाने लगे तभी एक हंस बोला भाइयो ये कौवा हमारा मित्र है क्यो न हम इसे भी निमन्त्रण मे लिवा चले।
यह बात सुनकर एक हंस बोला इसका रंग हमसे नही मिलता अगर मिलता होता तो लिवा चलते। दूसरा हंस बोला बात अगर रंग की है तो हम इसे अपने रंग मे रंग लेगे। तो क्या फिर इसको साथ ले चलेगे। बाकी हंसो ने स्वीकृति दे दी।
उन्होंने खड़िया और चुने से कौवे को रंग दिया। कौवा भी अब हंसो के रंग जैसा लगने लगा था।
सेठ के यहा सभी हंसो के साथ मे कौवा भी पहुचा।
सभी अच्छे अच्छे पकवान खाकर तृप्त हो गए। कौवा अपनी आदत के अनुसार जूठे पत्तलो पर जाकर बैठ गया। यह देखकर सेठ के एक नौकर ने हंसो से पूछा भाई ये जो आपके साथ हंस है जूठे पत्तलो पर क्या कर रहे है।
एक चतुर हंस बोला भाई ये हमारे गुरु जी है। हम सभी मे विवाद हो गया था की सेठ जी के यहा कितने आदमियो ने खाना खाया कोई 2000 कह रहा था तो कोई ढाई हजार कह रहा था। गुरु जी ने कहा हम पत्तल गिन कर निर्णय करेगे की 2000 आये थे या ढाई हजार।
अच्छे लोगो की संगति ने कौवे के सम्मान की रक्षा की।
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